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प्र यद्भन्दि॑ष्ठ एषां॒ प्रास्माका॑सश्च सू॒रय॑:। अप॑ न॒: शोशु॑चद॒घम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra yad bhandiṣṭha eṣām prāsmākāsaś ca sūrayaḥ | apa naḥ śośucad agham ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। यत्। भन्दि॑ष्ठः। ए॒षा॒म्। प्र। अ॒स्माका॑सः। च॒। सू॒रयः॑। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम् ॥ १.९७.३

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:97» मन्त्र:3 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:5» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह सभाध्यक्ष कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने सभापते ! (यत्) जिन आपकी सभा में (एषाम्) इन मनुष्य आदि प्रजाजनों के बीच (अस्माकासः) हम लोगों में से (प्र, सूरयः) अत्यन्त बुद्धिमान् विद्वान् (च) और वीरपुरुष हैं वे सभासद् हों, (भन्दिष्ठः) अतिकल्याण करनेहारे आप (नः) हम लोगों के (अघम्) शत्रुजन्य दुःखरूप पाप को (प्र, अप, शोशुचत्) दूर कीजिये ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में भी (अग्ने) इस पद की अनुवृत्ति आती है। जब विद्वान् सभा आदि के अधीश आप्त अर्थात् प्रामाणिक सत्य वचन को कहनेवाले सभासद् और आत्मिक, शारीरिक बल से परिपूर्ण सेवक हों, तब राज्यपालन और विजय अच्छे प्रकार होते हैं, इससे उलटेपन में उलटा ही ढङ्ग होता है ॥ ३ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे अग्ने यद्यस्य तव सभायामेषां मध्येऽस्माकासः प्रसूरयो वीराश्च सन्ति ते सभासदः सन्तु। स भन्दिष्ठो भवान् नोऽस्माकमघं प्रापशोशुचत् ॥ ३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) प्रकृष्टार्थे (यत्) यस्य (भन्दिष्ठः) अतिशयेन कल्याणकारकः (एषाम्) मनुष्यादिप्रजास्थप्राणिनाम् (प्र) (अस्माकासः) येऽस्माकं मध्ये वर्त्तमानाः। अत्राणि वाच्छन्दसि सर्वे विधयो भवन्तीति वृद्ध्यभावः। (च) वीराणां समुच्चये (सूरयः) मेधाविनो विद्वांसः (अप, नः०) इति पूर्ववत् ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्राप्यग्ने इति पदमनुवर्त्तते। विद्वांसः यदा सभाद्यध्यक्षा आप्ताः सभासदः पूर्णशरीरबला भृत्याश्च भवेयुस्तदा राज्यपालनं विजयश्च सम्यग्भवेताम्। अतो विपर्य्यये विपर्य्ययः ॥ ३ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रातही (अग्ने) या पदाची अनुवृत्ती झालेली आहे. जेव्हा सभेचा राजा विद्वान, सत्यवचनी सभासद व शारीरिक बलाने परिपूर्ण सेवक असतील तर राज्यपालन उत्तम होते व विजय चांगल्या प्रकारे प्राप्त होतो. याविरुद्ध असल्यास सर्व उलट होते. ॥ ३ ॥